कुछ अरसे गुज़र गए यह दीवारें देखते हुए,
दिल हुआ है ज़िन्दगी को नए सिरे से देखने का,
नयी ज़मीन पर बैठने का, नयी दीवारों को ताकने का.
तोह चल पड़ें एक और रस्ते पर, एक और ठिकाने की तालाश में,
मंजिल फिर नहीं है, सफ़र से फिर ना कोई उम्मीद,
दिल को बहलाना है, वही पुरानी ख्वाहिश.
No comments:
Post a Comment